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जग-मग जग-मग
दीपक जलते, लगते शुभ्र सितारे हैं
दीप मालिका के स्वागत में, नभ ने मोती वारे हैं
समरसता
संयुक्त स्नेह का, वातावरण सुहाना है
दसों दिशायों में सद्भावी, गूँज रहा मृदु गाना हैं
फुलझड़ियों की चमक-दमक से,
सजे धजे गलियारे हैं
अमा निशा पर
विजय ध्वजा–सी, दीपमालिका शोभित है
युवा-युवतियाँ बाल-वृद्ध का, ह्र्द्योल्लास
सुयोजित है
दीपों के अविरल प्रकाश से,
ज्योतिर्मय घर-द्वारे हैं
हर्षित मन से
सभी कह रहे, सबको पर्व बधाई है
भेजी जाती स्नेह भाव से, सबको मधुर मिठाई है
खील बताशे विविध खिलौने,
लगते बहुत दुलारे हैं
खींच दिया है
चित्र कलम ने, नगरों कस्बों गाँवों का
मौसम भी आ गया घटाने, वाले सकल तनावों का
रचा गीत कवि के अनुभव ने,
लेकिन भाव तुम्हारे है
तुकाराम वर्मा
२४ अक्तूबर २०११ |