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जज़्बों की लौ तेज़ करो, ये रात बहुत काली है
अंतस को रौशन करने का नाम दिवाली है
सघन अँधेरे पैठ गए हैं भीतर अंतरतम में
इन्हीं अँधेरों से लड़ने का नाम दिवाली है
आने वाली नस्लों के सब ख़्वाब रहें ज़िन्दा
अपनी किस्मत ख़ुद लिखने का नाम दिवाली है
फुलझड़ियाँ बम और पटाखे छोड़ो जी भर के
किरन किरन खुलती उजास का नाम दिवाली है
आसमान का धुआँ कभी अंतस में न छाए
नन्हें नन्हें संकल्पों का नाम दिवाली है
घर आँगन से ज़्यादा रौशन, दिल-दिमाग़ हों जब
समझो फिर तो सारा जीवन एक दिवाली है
एक इशारा है ये जिसका नाम दिवाली है
काली और सर्द रातों में गर्म दिवाली है
श्रीकांत सक्सेना
२४ अक्तूबर २०११ |