ज्योतिर्मय आई
दीवाली
पुलकित है हिय में हर आली
दीपक थाल लिये
श्री पूजन संग गणपति वंदन
मधुर गीत स्वर का स्पंदन
शोभित है हर ओर गगन के
घोर अमावस माथे चंदन
नीरज नाल लिये
वन्दनवार पटाखे लड़ियाँ
बचपन झूमे ले फुलझड़ियाँ
कम्पित गात धरे पग धीरे
कुसुमित नवल वधू मन कलियाँ
पुष्पित माल लिये
स्नेह अकिंचन अंतस तमसित
काव्य प्रकाश भुवन में उजसित
वागेश्वरि वीणा झंकृत कर
राग विहाग हृदय हो विकसित
माँ उर माल लिये
-श्रीकान्त मिश्र 'कान्त'
२४ अक्तूबर २०११ |