बरसों पहले आई जब
मैं
सात समंदर पार
गठरी बाँध के लाई थी संग
सारे तीज – त्यौहार
कभी मैं खोलूँ एक गाँठ मैं
द्वारे दीप सजाऊँ
इक खोलूँ मैं पुड़िया रंग की
मंगल कलश रंगाऊँ
बड़े जतन से जोड़ा मैंने
देसी घर – संसार
कभी मैं खोलूँ दूजी गठरी
ओढूँ लाल चुनरिया
झिलमिल बिंदिया माथे सोहे
पाँव सजे पायलिया
भेंट करें परदेसी नाते
रीझ – रीझ उपहार
कभी तो पागल मनवा ढूँढे
बचपन की वो गलियाँ
याद करूँ सखियाँ –हमजोली
भर - भर आवें अँखियाँ
आँचल में बाँधा है अब तक
माँ बाबुल का प्यार
-शशि पाधा
२४ अक्तूबर २०११ |