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दिन उत्सव के
दीप लिये हैं खड़े द्वार पर
उन्हें नमन है
जोत उन्हीं दीयों की
सबको उजियारेगी
लखमी मइया
सबके दुख-विपदा टारेगी
दिन उत्सव के
ड्योढ़ी-ड्योढ़ी दीप रहे धर
उन्हें नमन है
सूरज भी है
मेघों के घेरे से निकला
यही प्रार्थना
छँटे अँधेरा जो है पिछला
दिन उत्सव के
नेह रहे बो, साधो, घर-घर
उन्हें नमन है
यही दुआ है
ताल-कुएँ हों कभी न खारे
शोक-मोह जो रहे आसुरी
बीतें सारे
दिन उत्सव के
जगा रहे सुख सबके भीतर
उन्हें नमन है
-कुमार रवीन्द्र
२४ अक्तूबर २०११ |