आ गया
दीपों का त्यौहार
अँधेरा टाले नहीं टले
दूर हो
मन की कड़वाहट
न हो अब कोई जन आहत
मिटा दे हर विकार मन से
नेह का हो
ऐसा व्यवहार
हृदय में अनुपम नेह पले
चाँदनी
तू चुप सी क्यों है
अमावस से डरती क्यों हैं
तमस का टूटेगा फिर जाल
प्रकाशित होगा
हर घर द्वार
रौशनी होगी साँझ ढले
-कृष्णकुमार तिवारी
२४ अक्तूबर २०११ |