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गीत हैं बिखरे चारों ओर
गीत हैं
बिखरे चारों ओर
मन पतंग को लगे उड़ाने,
उत्सव लेकर डोर,
समाचार
हैं बिछे लान में,
शतरंजी बाज़ी बागान में,
प्याले चाय, कहकहे काफी,
सहेलियों के
झुरमुट झाँकी,
मंद-मंद है पवन सुहानी,
रस भीगी है भोर,
झाँक रहा
कोहरे का दर्पण,
शीतलता से सिहरा आँगन,
त्योहारों के मौसम आए,
खील खिलौने
सबको भाए,
दीप देहरी सजे हुए हैं,
नाच रहे मनमोर
-कल्पना रामानी
२४ अक्तूबर २०११ |