अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

दीप धरो
वर्ष २०११ का दीपावली संकलन

उत्सव के ये मौसम



 

उत्सव के ये मौसम
क्या क्या रंग दिखाते आये,
तन-मन यादों के मेले में
फिर भरमाते आए

लाल ओढनी
ओढ़े मनवा फिर से हुआ मलंग,
अंतर्मन की ड्योढ़ी पर फिर
बज उठे मृदंग,
तानपुरे के
तारों पर फिर थिरकन आकर झूली
गत कोई फिर कोकिल बनकर
अपने रस्ते भूली
पिया मिलन की बातों से फिर
दिन शरमाते आए

हँसे जो झालर
आज हवेली वही झोपडी जाये ,
आँसू गुनिया की आँखों के
दुलराये बहलाये ,
अबके बरस जो
आये त्यौहारी मन चहके चहकाये,
हर शहीद के धर पर थोड़ी
उजियारी धर जाए
देख पटाखे करें प्रदूषण
मन धमकाते आए

मौल सजे
बाजार लगे पर जेब नहीं है भारी,
किश्तों पर सब कुछ मिलता घर-
बजट पे चलती आरी,
एक आँख में
आँसू अपने हमसे बिछड़ गये क्यूँ,
आतंकी दानव के सम्मुख
ऐसे पिघल गये क्यूँ,
दीप दिवाली ले उजियारा
फिर समझाते आए

-गीता पंडित

२४ अक्तूबर २०११

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter