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उत्सव के ये मौसम
क्या क्या रंग दिखाते आये,
तन-मन यादों के मेले में
फिर भरमाते आए
लाल ओढनी
ओढ़े मनवा फिर से हुआ मलंग,
अंतर्मन की ड्योढ़ी पर फिर
बज उठे मृदंग,
तानपुरे के
तारों पर फिर थिरकन आकर झूली
गत कोई फिर कोकिल बनकर
अपने रस्ते भूली
पिया मिलन की बातों से फिर
दिन शरमाते आए
हँसे जो झालर
आज हवेली वही झोपडी जाये ,
आँसू गुनिया की आँखों के
दुलराये बहलाये ,
अबके बरस जो
आये त्यौहारी मन चहके चहकाये,
हर शहीद के धर पर थोड़ी
उजियारी धर जाए
देख पटाखे करें प्रदूषण
मन धमकाते आए
मौल सजे
बाजार लगे पर जेब नहीं है भारी,
किश्तों पर सब कुछ मिलता घर-
बजट पे चलती आरी,
एक आँख में
आँसू अपने हमसे बिछड़ गये क्यूँ,
आतंकी दानव के सम्मुख
ऐसे पिघल गये क्यूँ,
दीप दिवाली ले उजियारा
फिर समझाते आए
-गीता पंडित
२४ अक्तूबर २०११ |