|
पुरखो का वरदान दिवाली
अपनो से पहचान दिवाली
एक बरस में ही आती है
दो दिन की मेहमान दिवाली
हँसी खुशी की एक लहर है
मीठी सी मुस्कान दिवाली
लड्डू, पेड़े, गुझिया बरफ़ी
इक मीठा पकवान दिवाली
जीवन की आपाधापी में
प्रश्न एक आसान दिवाली
नया बरस खुशियाँ लायेगा
कुछ ऐसा अनुमान दिवाली
चाँद सितारे अंबर में हैं
धरती का अभिमान दिवाली
अपनों से जब दूर हो बैठे
लगती है सुनसान दिवाली
मधुर क्षणों की अनुभूति ये
कविता का उन्वान दिवाली
-अनूप भार्गव
२४ अक्तूबर २०११ |