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कुछ दीप आस्था के जो
विश्वास बन गये,
कुछ यूं जले कि वो दिए इतिहास बन गए।
तुम ने भी मेरे मन में जलाए थे प्रेम-दीप,
वो नेह दीप प्रीत का एहसास बन गए।
सीमा पे जले जो दिए, मिसाल बन गए
कर के उजाला देश की मशाल बन गए।
बाती वतन के प्रेम की ऐसी जली के वो,
खुद को मिटा मां भारती के लाल बन गए।
कुछ दीप चुन के भेजे थे उजास के लिये,
संसद में पहुंच वो अमा की रात बन गए।
हम आज भी वहीं हैं बरसों से थे जहाँ,
वो ही चिराग घर के आत्मघात बन गए।
एक दीप जलाओ फ़कत इंसान के लिये,
हिंदू के लिये हो वो मुसलमान के लिये।
मंदिर में हो अज़ान तो मस्ज़िद में आरती,
सब दीप जलाएं तो हिंदोस्तान के लिये।
-आर० सी० शर्मा “आरसी”
२४ अक्तूबर २०११ |