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दीप धरो
वर्ष २०१० का दीपावली संकलन

कुंडलियाँ


[१]

दीवाली की रात में दिये जलाते लोग।
मां लक्ष्मी को पूजते चढ़ा चढ़ा कर भॊग।
चढ़ा चढ़ा कर भोग चाहते लक्ष्मी आये।
उनके घर का अंधकार् बिल्कुल मिट जाये।
नहीं चाहते लोग भला अब और किसी का।
नवयुग का परिणाम नतीजा नये दौर का।


[२]

नहीं दूसरों के लिये बचा प्रेम विश्वास।
किन्तु दिवाली के दिये दिखलाते कुछ आस।
दिखलाते कुछ आस उजाला सब को देते।
पल भर को ही सही तमस जग का हर लेते।
कहते दीप,तुम्हें भी पल पल जलना होगा।
उजियारा देकर,अंधियारा हरना होगा।

[३]

खूब चलाते रात भर चकरी बम अनार।
रुपये करोड़ों फूंकते व्यर्थ और बेकार।
व्यर्थ और बेकार जहर सब में फैलाते।
जहरीली बारूद जलाकर धुँआ उड़ाते।
आज समय की माँग फटाके बंद करा दो।
इन पैसों में अस्पताल,स्कूल बना दो।

[४]

माँग दिनों दिन बढ़ रही बिजली की हर साल।
बिजली होती जा रही है जी का जंजाल।
है जी का जंजाल करोड़ों बल्ब जलाते।
झूठी शान दिखावा दुनियाँ को दिखलाते।
व्यर्थ रोशनी बिजली झूमर बंद करादो।
यह पैसा कमजोर गरीबों को बंटवा दो।

--प्रभुदयाल
१ नवंबर २०१०

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