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दीप धरो
वर्ष २०१० का दीपावली संकलन

आठ क्षणिकाएँ

१-
उजाले की पैठ
देशों की सीमायें नहीं देखती
जाति या धर्म नहीं देखती
वो तो बस अँधेरा देखती है
और हर घर को रोशन करती है
अपना धर्म समझ कर 


२-
अगर तुमने ये ठानी है
चराग़ों को बुझा दोगे
तो हमने भी कसम ली है
ये लौ महफूज़ रखेंगे


३-
अबके दीवाली कुछ ऎसी हो
महक उठे, हर घर हर आँगन,
अंतर्मन के दीप जलादो
सारा जग हो जाये रौशन


४-
चलो इक दीपक जलाएँ !
तिमिर इस जग का मिटाएँ
नयन में झिलमिल सपन और
गीत अधरों पर सजाएँ


५-
अँधेरे का विस्तार
कितना भी क्यों न हो
दिए के आगे छोटा ही पड़ जाता है
एक बार दिया बन कर तो देखो ,
दुनिया जगमगाएगी
तुम्हारी आँखों में


६-
झोंपड़ी हो या महल
दीपक का रूप बदलता है
काम नहीं


७-
नफरत की आंधी
कितनी भी तेज हो
नहीं बुझा सकती
जोत प्यार की


८-
आओ सब मिल दिए बनाएँ
त्याग तपस्या नेह प्रीत से
हर दीये को खूब सजाएँ
हर चौखट पर बना रंगोली
दुश्मन को भी गले लगाएँ
शुभ-शुभ दीपावली मनाएँ

--मंजु मिश्रा
१ नवंबर २०१०

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