अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

दीप धरो
वर्ष २०१० का दीपावली संकलन

दीपावाली हाइकु


मनी दीवाली
बाग-बगीचों में भी
जुगनू संग ।


उठती नहीं
लौ अब चिरागों से
सूखे हैं दिए ।


अँधियारे की
उजियारे के आगे
टूटती साँसे ।


रखती रही
अँधेरी अटारों पे
रोशनी मोती ।


रूठा अँधेरा
लड़ा चाँदनी संग
छोड़ा है साथ ।


दौड़ता रहा
रात भर अँधेरा
देख चाँदनी


फैला प्रकाश
इन्द्रधनुष जैसे
देखो ना कैसे ।


चाँद बेचारा
देख दीपशिखायें
मुँह छुपाये ।


दीप कतारें
चमकीले सितारे
अँधेरा हारे ।

१०
दीये सजाओ
दूर करो सारा ही
ये अँधियारा ।

११
मिटा न सका
गम का अँधियारा
नन्हा दीपक ।

१२
चारों तरफ
फैला है अँधियारा
टूटे हैं दीए।


--
भावना कुंअर
१ नवंबर २०१०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter