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उत्सव के नाम
 
चूल्हे की खुशबू
और धुएँ की गंध
उत्सव के नाम लिखें
आओ एक छंद

तिल गुड़ की महक लिये
भोर की किरण
थिरक रही 'गजक' ओढ़
शीत की चुभन

उड़ती पंतगों से
भरा आसमान
चकरी और डोरी का
अपना अभिमान

नदियों तालाबों में
हुए दीपदान
पूजन, वंदन, अर्चन
मकर का विधान

चाहत से हों भरे
श्रद्धा विश्वास
स्नेह, प्रेम, करुणा से
मिलती मिठास

- श्रीधर आचार्य "शील"
१५ जनवरी २०१७

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