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ताजा लड्डू तिल के
 
मकर रेख में सूरज खाये
ताजा लड्डू तिल के

ठण्डी दुबकी तन के भीतर
समझे हमें रजाई
दाँत बजें कंपकंपी छूटती
साँस लगे शहनाई

सर्द हवाएँ लेकर घूमें
महज अनल के छिलके

भूली बिसरी दिनचर्या को
बेमन ढोता दिन भी
धूप, तपन को रही लीलती
काँप रहे पल छिन भी

दोष नहीं मौसम का, रहता
बाहर-भीतर मिल के

पूजा व्रत संकल्प हुए अब
उत्सव अपने घर में
नेक भले की करे कामना
ईंगुर सजकर सर में

अपनेपन को ढोते रहना
लेकर टुकड़े दिल के

- रामकिशोर दाहिया
१५ जनवरी २०१७

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