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भास्कर ने राह बदली
 
भास्कर ने राह बदली
या कि बदली है अवनि ने
रात से यह बात पूछी
आज फिर नीले गगन ने

कोहरे में मुँह छुपाकर
दिन अभी सोया हुआ है
सूर्य भी कुछ बादलों के
खेल में खोया हुआ है

आँख खोली है अभी बस
नींद अलसाए सुमन ने

रश्मियों ने खींच डाली है
घने कुहरे की चादर
खिलखिला कर कहा कलियों-
ने कि स्वागत है धरा पर

ओस बूँदों से बने मोती
लगी है सुबह गिनने

भोर का तारा यहाँ से
रूठ कर अब जा चुका है
आँख तो खोलो ज़रा
देखो उजाला आ चुका है

भूल जाओ रात को हँसकर-
कहा है आज दिन ने

- प्रदीप शुक्ल
१५ जनवरी २०१७

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