अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

करवटें लेने लगा मौसम
 
करवटें लेने लगा मौसम
आ गये हैं लौट कर
फिर दिन उमंगों के।

भोर का पंछी लगा गाने
पर लगी फिर धूप फैलाने
शान्त ठहरे झील के जल में
जाल किरणों के लगे भाने

सरगमों पर इन हवाओं के
थिरक उठते पॉव
रह-रह कर तरंगों के।

ओस भीगी बालियाँ लहकीं
फूल के संग डालियाँ महकीं
स्वप्न फिर मधुमास का लेकर
फिर रहीं पुरवाइयाँ बहकी

द्वार फिर खोले दिशाओं ने
टाँग कर पर्दे क्षितिज पर
विविध रंगों के।

फिर तटों पर जुड़ गये मेले
उत्सवी ये दृश्य अलबेले
बाँट कर तिल-गुड़ चलो हम सब
शीत के ये दिन कठिन झेलें

पंख लेकर फिर उमीदों के
उड़ चला मन संग इन
ऊँची पतंगों के

- मधु शुक्ला
१५ जनवरी २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter