अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

इस मकर संक्रांति
 
इस मकर संक्रांति
चल हम भी बनें न्यारी पतंग

उत्तरायण सूर्य से
मन में रखी हर बात बोलें
डोर की गरिमा तले
कुछ पंछियों के संग हो लें

निकट से देखें सजाता
बादलों में कौन रंग

हैं जिधर मेले लगे
थोड़ा उधर भी घूम आएँ
गुड़-तिलों से फैलते
मीठेपने की लें बलाएँ

बीच में भागें बढ़ाकर
छतों पर खिलती उमंग

आज पुरवा की पिटारी
कुछ नवेली सी महकती
सभी कोनों के भरे संवाद
जो वह है चहकती

झूम उसकी गोद में
जानें कहाँ के क्या हैं ढंग

- कुमार गौरव अजीतेन्दु
१५ जनवरी २०१७

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter