 |
भरे पुण्य मेले |
|
बदल सूर्य ने निज रथ-पथ,
शुभ-
पाँव धरे धनु छोड़ मकर में
भरे पुण्य-मेले, नदियों-तट
शंख फूँक, हर गाँव-
शहर में
मौसम ने करवट फिर बदली
सर्द हवा ने पाँव समेटे
जाग पड़े, भँवरे, कलियाँ, गुल
जो सोए थे शीत लपेटे
मन पाखी उड़ चला पतंगों-
संग डोर पर
नीलांबर में
बढ़े दिवस, घर लौटे पाखी
मिली पुनः चह-चह नीड़ों को
कुदरत बाँट रही अंजुरि-भर
धूप-सुखद, जग-जन-जीवों को
मान देख गुड़-तिल गर्वित हो
मना रहे उत्सव
घर-घर में
तृप्त हो रहे सूर्य अर्ध्य ले
मंत्र-मुग्ध है, डुबकी पावन
जाप रहे लब, नाम राम का
माँग रहे दिल, दिन मनभावन
हर इक घाट अमीरी-गुरबत
साथ छप रहे आज
खबर में
- कल्पना रामानी
१५ जनवरी २०१७ |
|
|
|
|
|