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उड़ रहीं नभ में पतंगें
 
उड़ रहीं नभ में पतंगें
पर्व यह हर पर्व से कुछ
भिन्न, अलबेला लगा है

शीत बीती, दिन गये खिल
आ गये बाजार में तिल
गुड़, गजक, लड्डू मिठाई
रेवड़ी का हर गली में
हर जगह ठेला लगा है

चल पड़े सब शुद्ध होने
किये, सोचे, पाप धोने
तीर पर भागीरथी के
लोग जुटने लग गये हैं
क्या गजब मेला लगा है

सूर्य का स्वागत करें हम
क्यों कुहासे से डरें हम
क्यों न गायें, मुस्करायें
मुस्कराने में भला क्या
किसी का धेला लगा है

- अंकित काव्यांश
१५ जनवरी २०१७

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