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दिवस सक्रांत पर
 
रिश्ता होता है
पतंग संग डोर का
रात भर चाँद
निहारते चकोर का

तिल और गुड़ का भी
वैसा ही साथ है
जैसा होता है
बादल और मोर का

ऋतु सक्रांत पर
जब बर्फ हवाएँ उड़ती हैं
अक्स घूमा देती है धूप
सूरज के छोर का

गगन पतंगो से
भर जाता है सक्रांत पर
रँग देता है मन
माहौल बना कर शोर का

चिड़िया जब सुनाती है
गीत मौसम को
रंग बदल जाता है
साँझ और भोर का।

- डा.सरस्वती माथुर
१५ जनवरी २०१७

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