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आए सूरज देव
 
आए सूरज देव हैं, सुत-घर करन निवास
काल मकर-सक्रांति में, पूजन औ उपवास
पूजन औ उपवास, कहीं माघी के मेले
दीप-दान औ' स्नान, भीड़ के चहुँ-दिस रेले
सद्कर्मों का मास, माघ बस यह समझाए
'रीत' कर्म अनुरूप, चखो फल जो भी आए

फैला डोर पतंग का, आसमान में जाल
सूरज को ढँकने चला, सतरंगी रूमाल
सतरंगी रूमाल, झूम बोले मतवाला
नभ में है त्यौहार, पतंगों वाला आला
पल में कटे पतंग, नहीं पर मन कर मैला
डोरी दाता हाथ, जाल सिखलाता फैला

मन में जब हों दूरियाँ, हिम हो जाएँ भाव
संबंधों को तापता, तब बस नेह अलाव
तब बस नेह अलाव, तरल हिमकण को करता
गुड़-गज्जक की भाँति, मधुरता मन में भरता
मोल नेह का 'रीत', समझ लें यदि जीवन में
मिट जाएँ सब द्वन्द्व, सदा हों खुशियाँ मन में

- परमजीतकौर 'रीत'
१५ जनवरी २०१७

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