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काल है संक्रांत का |
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काल है संक्रांत का करवट धरा
लेने लगी है।
आज गुड़-तिल में सिमट हर बात मीठी हो गयी है।
सूर्य की किरणें हुई हैं, आज से सीधी जरा सी
घर मकर के आज सूरज देव की आमद हुई है।
उम्र हो, दिन हों कि रिश्ते, आती है संक्रांति सब में
दौर ये नाज़ुक बहुत, संवेदना भी लाज़मी है।
डोर को थामे पतंगें, उड़ रही हैं आसमां में
साथ बंधन के उड़ानें, मुक्ति में गर्दिश मिली है।
दाँव पेंचों से भरा है आसमां भी आजकल तो
"एक बाज़ी और हो" आवाज़ हर सू आ रही है।
प्रार्थना करते हैं मन की आज सूरज देवता से
लोग उमड़े स्नान खातिर भीड़ घाटों पे लगी है।
स्नान, जप-तप, दान का है क्षण अनुष्ठानों का मौसम
स्वाद खिचड़ी का अलौकिक औ' समाहित स्नेह भी है।
- अनिता मण्डा
१५ जनवरी २०१७ |
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