सूरज किया तुमको नमन है
छायी निशा का
अंत करते, विस्तृत भुवन का
प्राण हो तुम
हतप्रभ प्रजा जब त्राहि करती,
उनके दुखों का त्राण हो तुम
तुमसे बनी यह सृष्टि महकी,
तुमसे रहे जग में उजाला
प्राणी सभी पुलकित हुए है, सब
पा रहे खुद का निवाला
तुमसे सुवासित हो रहा है अद्भुत
यहाँ मेरा चमन है
सूरज किया तुमको नमन है
उत्तर हुए क्यों
आज तुम फिर जिस राशि में हो
पाँव धरते
व्याकुल धरा फिर धन्य होती,
पीड़ित जनों का कष्ट हरते
भगवत कथा में भी कहा है,
संक्रांति का यह पर्व शुभ है
उल्लास छाया इस जहाँ में,
साक्षी बना यह सकल नभ है
आराधना में मग्न जन है, दक्षिण
दिशा से फिर गमन है
सूरज किया तुमको नमन है
कहते रहे जो
ऋषि मुनी अब
है दानियों का पाक दिन यह
शुभ काम का फल मिलता है पावन
धरा का पर्व दिन यह
उन्हें अगर दौलत दिए तुम जो हैं समय की चोट खाये
होते रहे जग में प्रताड़ित
अस्तित्व अपना हैं गवाए
धन से अभी जो बन चुके हैं कमजोर
का करते दमन है
सूरज किया तुमको नमन है
- सम्पदा मिश्रा
१ जनवरी २०२४ |