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संक्रान्ति का सूरज
 
मंदिरों के शिखर पर संक्रांति का सूरज जगा है
मुक्ति की नगरी में स्वर्णिम पुण्य-सा
देखो सजा है

धुंध है आकाश से
कोहरे के सीकर झर रहे हैं
और लहरों में उचक कुछ दान-दीपक तिर रहे हैं
घंटियों में गूँज है बढ़ते हुए उल्लास की
हलचलें हैं घाट पर भक्तों के
मृदु विश्वास की

दूर नभ में आस्था के दीप-सा देखो दहा है
मंदिरों के शिखर पर संक्रांति का
सूरज जगा है
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सर्द कलशों को
समृद्ध इतिहास से गरमा रहे हैं
' हिमानी इक कहानी बाँचकर पिघला रहे हैं
इन कंगूरों में गढ़ी ऊँचाइयों की शपथ लेकर
मंदिरों के रास्ते आवाज दे
समझा रहे हैं

इस विरासत को सम्हालो तमस को जिसने सहा है
मंदिरों के शिखर पर संक्रांति का
सूरज जगा है

- पूर्णिमा वर्मन
जनवरी २०२४

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