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आया जाड़ा |
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मौसम ने
करवट बदली है आया जाड़ा घर के द्वार
बाहर जाना बंद हो गया बाबा ने थामा अखबार
थर-थर काँपें बूढ़ी दादी, बाबा
ओढ़ें कंबल चार
धूप हवा के
साथ दौड़ती पेड़ों पर चढ़ जाती है
शीत लहर अब करे ठिठोली थर-थर बदन कँपाती है
आँख-मिचौनी सूरज खेले, अम्मा को
चढ़ गया बुखार
उड़ी पतंगें
रंग-बिरंगी उत्तरायण का शुभ त्योहार
इक-दूजे से गले मिल रहे भेंट कर रहे हैं उपहार।
चिक्की, गजक, रेवड़ी, तिल, गुड़
सजे हुए सारे बाजार
- डॉ मंजु लता श्रीवास्तव
१ जनवरी २०२४ |
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