अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

            आया जाड़ा

 
मौसम ने
करवट बदली है आया जाड़ा घर के द्वार
बाहर जाना बंद हो गया बाबा ने थामा अखबार
थर-थर काँपें बूढ़ी दादी, बाबा
ओढ़ें कंबल चार

धूप हवा के
साथ दौड़ती पेड़ों पर चढ़ जाती है
शीत लहर अब करे ठिठोली थर-थर बदन कँपाती है
आँख-मिचौनी सूरज खेले, अम्मा को
चढ़ गया बुखार

उड़ी पतंगें
रंग-बिरंगी उत्तरायण का शुभ त्योहार
इक-दूजे से गले मिल रहे भेंट कर रहे हैं उपहार।
चिक्की, गजक, रेवड़ी, तिल, गुड़
सजे हुए सारे बाजार

- डॉ मंजु लता श्रीवास्तव
जनवरी २०२४

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter