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मौसम अलबेला
 
सर्दी के मौसम को दुबके, हर प्राणी ने झेला है
जब से सुना शोर बच्चों का
मन ने उसे धकेला है

बच्चे ही हैं जिनको मौसम, कभी हरा ना पाएगा
होड़ मची है तरह तरह की, हर कोई लहराएगा
आज पतंगों का जो आया
अब मौसम अलबेला है

राह बदलने की तैयारी, सूरज ने है तय कर ली
चुना उत्तरायण का पथ अब, वल्गााएँ रथ की मचलीं
मौसम को आगाह किया सुन
नए साल का हेला है

ली अँगड़ाई जीवन ने यह पर्व अनोखा बच्चों का
वो मारा, वो काटा सुन दिल, धड़का अच्छे-अच्छों का
भरा हुआ आकाश पतंगों
से जैसे इक मेला है

फूली सरसों, खेत लहलहाए, जन जीवन हर्षाया
संग पवन भुनगों की मस्ती, ने भी जग महकाया
धरा हुई अब रंग बिरंगी
पर्व यह नया नवेला है जब से

गजक, रेवड़ी, तिल-पपड़ी की, है बहार बाजारों में
दान धर्म, स्नान नदी तो, है अब भी संस्कारों में
पुण्य कमा थोड़ा, जीवन तो
चला चली का खेला है

- आकुल
जनवरी २०२४

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