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           बदली संगत सूर्य की

 
मौन भरे लब़ सूर्य के, शर्माई सी भोर
कोहरे की केबिन में, इश्क दिखा घनघोर

बदली संगत सूर्य की, धुंध मवाली चंड
बीड़ी पीकर खाँसता, धुँआ-धुँआ भूखंड

सूर्य क्षेत्र कर्फ्यू लगा, धुंध बड़ी मुस्तैद
आधे रस्ते धूप भी, बिन नोटिस के कैद

नीली- पीली पतंगें, उड़ीं गगन के छोर
पिया सुरक्षित हाथ में, रहती जब तक डोर

मुख रेवड़ियाँ तिल सजे, मक्का चिटका फूट
घी, खिचड़ी के ताल पे, गुड़ दही अन्नकूट

बोये जब से जिगर में, बेफिक्री के बीज
सदानन्द फूले-फले, माघी इस दहलीज

- त्रिलोचना कौर
जनवरी २०२४

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