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उत्तरायणी |
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तिलकुट का स्वाद, और खिचड़ी
का भोग
जीवन में रस भरा, मन में है जोग
सबका कल्याण हो, जी लें सब सुख से
मानव जीवन मिला अदभुत संयोग
सूरज रथ पर चढ़ा, बढ़ा उत्तर की ओर
तिल-तिल कर दिन बढ़ा, हुई सुहानी भोर।
मकर के पच्चीस दिन, बाकी है सिहरन
ताप धूप का हमें अभी, भला लगे मुँहजोर
भरा आज नभ, लाल, हरी, पीली पतंगों से
घर-घर बनें पकवान, बड़े उछाह उमंगों से
करें स्नान, ध्यान, व्रत, हिल-मिल नर-नारी
पुण्य लाभ ले रहे, पाप तारिणी तरंगों से
बाज रहे ढोल-मंजीरा, बँटे रेवड़ी लैया
नाचें-गाएँ मस्ती में, खुश हो कर भैया
शुभलगन शुभघडियों के दिन आ गये
घर-घर बजे बधाई, महल हो या मड़ैया
- पूर्णिमा जोशी
१ जनवरी २०२४ |
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