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            चंचल पतंगें

 
जंग कोई जीतने को ले गई हैं दल पतंगे
या गगन को चूमने को उड़ रहीं चंचल पतंगे

रंग सतरंगी बिखेरे आसमानी फर्श पर जब
लग रहा है एक दूजे को रही है छल पतंगे

युध्द ये कैसा छिड़ा है, काट कर कट भी रही हैं
कम नहीं हैं हम दिखाए जा रही हैं बल पतंगे

साथ मांझे नें दिया जब तक उड़ी तब तक गगन में
साथ छूटा जा गिरीं फिर नैन में भर जल पतंगे

खुश बहुत आकाश होता रंग बिरंगा साथ पाकर
धूप की पायल पहन इतरा रही बेकल पतंगे

ताल जब देती हवाएँ तो थिरकती सरसराती
पेच लड़ जाए तो कट कर चूमती हैं थल पतंगे

डोर अनुशासन की थामे, कुछ अकड़ में ढील भरकर
बाद कटने के भी उड़ती व्योम पर हर पल पतंगे

- रमा प्रवीर वर्मा
जनवरी २०२४

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