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राखी के त्योहार पर

रक्षाबंधन

"राखी के त्यौहार पर, बहे प्यार के रंग ।
भाई से बहना मिली, मन में लिए उमंग।
मन में लिए उमंग, सकल जगती हरसाई।
राखी बाँधी हाथ, हुए खुश बहना, भाई।
'ठकुरेला' कविराय, रही सदियों से साखी।
प्यार,मान-सम्मान, बढाती आई राखी।

कच्चे धागों में छिपी, ताकत अमित, अपार।
अपनापन सुदृढ़ करें, राखी के ये तार।
राखी के ये तार, प्रेम का भाव जगाते।
पा राखी का प्यार, लोग बलिहारी जाते।
'ठकुरेला' कविराय, बहुत से किस्से सच्चे।
जीवन में आदर्श, जगाते धागे कच्चे।

रेशम-डोरी ही नहीं, यह अमूल्य उपहार।
धागे-धागे में भरा, प्यार और अधिकार।
प्यार और अधिकार, हमारी परम्पराएँ।
प्राणों का बलिदान, प्रेम की अमर-कथाएं। ।
'ठकुरेला' कविराय, न इसकी महिमा थोरी।
प्रस्तुत हो आदर्श, बंधे जब रेशम-डोरी।

रक्षाबंधन आ गया, दूर देश है वीर।
राखी के इस पर्व पर, बहना हुई अधीर।
बहना हुई अधीर, अचानक नयना बरसे।
उठी ह्रदय में हूक, चले यादों के फरसे।
'ठकुरेला' कविराय, बुझ गया खिला खिला मन।
भाई बसा विदेश, देश में रक्षा-बंधन।

--त्रिलोक सिंह ठकुरेला
६ अगस्त २०१२

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