बँधी राखी
कलाई पे
बँधी राखी
महज़ है अब ख्यालों में !
यही सरहद
यही खंदक
यही
बन्दूक के साये !!
--शरद जायसवाल
मुक्तक
बहन कलाई पर बाँधे, स्नेह सूत्र का ये बंधन
पुलकित तन मन, महक उठे सांसों में चन्दन
इस बंधन के यशोगान से भरा पड़ा इतिहास
डिगे नहीं विश्वास धरातल दृढ़ करता रक्षाबंधन
--अनिल कुमार मिश्र
राखी एक भाव चित्र
बूँदों ने
दिन को कुछ ऐसे छुआ
रीत ही बदल गई काज-काम की
पीपल को
राखी-सी बाँधती हवा
आरती उतार रही
धूप आम की
सूखने में अभी और
देर लगेगी
छज्जे पर
फैली है चुनर शाम की
--अश्विनी कुमार विष्णु
मदन छंद या रूपमाला
आज वसुधा है खिली ऋतु,
पावसी शृंगार
थाल बहना बन सजाये, श्रावणी त्यौहार
बादलों से वृष्टि रस की, नेह की जलधार
इन्द्रधनुषी राखियों से, बँध गया संसार
अंबरीष श्रीवास्तव
६ अगस्त २०१२ |