आस लिए मन
में बहुत, बहन मिलेगी आज।
मिला पत्र न आऊँगी, अभी बहुत हैं काज।।
बहन सामने हो अगर, तब राखी अनमोल।
सुन्दर टीका माथ में, और प्यार के बोल।।
ईश्वर के इन्साफ पर, कभी कभी है क्रोध।
बहन सहोदर ना मिली, होता यह भी बोध।।
भाई बहन के प्यार का, यह अनुपम त्योहार।
मिल ना पाते हैं कई, हो कर के लाचार।।
आँखें नम होतीं गयीं, सुमन बहुत मजबूर।
राखी के दिन क्यों भला, भाई बहन से दूर।।
--श्यामल सुमन
६ अगस्त २०१२ |