अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

यह अनुपम त्योहार

रक्षाबंधन

आस लिए मन में बहुत, बहन मिलेगी आज।
मिला पत्र न आऊँगी, अभी बहुत हैं काज।।

बहन सामने हो अगर, तब राखी अनमोल।
सुन्दर टीका माथ में, और प्यार के बोल।।

ईश्वर के इन्साफ पर, कभी कभी है क्रोध।
बहन सहोदर ना मिली, होता यह भी बोध।।

भाई बहन के प्यार का, यह अनुपम त्योहार।
मिल ना पाते हैं कई, हो कर के लाचार।।

आँखें नम होतीं गयीं, सुमन बहुत मजबूर।
राखी के दिन क्यों भला, भाई बहन से दूर।।

--श्यामल सुमन
६ अगस्त २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter