अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

नहीं चाहिये हिस्सा

रक्षाबंधन

नहीं चाहिए मुझको हिस्सा माँ-बाबा की दौलत में
चाहे वो कुछ भी लिख जाएँ भैया मेरे ! वसीयत में

नहीं चाहिए मुझको झुमका चूड़ी पायल और कंगन 
नहीं चाहिए अपनेपन की कीमत पर बेगानापन 
 
मुझको नश्वर चीज़ों की दिल से कोई दरकार नहीं 
संबंधों की कीमत पर कोई सुविधा स्वीकार नहीं 

माँ के सारे गहने-कपड़े तुम भाभी को दे देना
बाबूजी का जो कुछ है सब ख़ुशी ख़ुशी तुम ले लेना
 
चाहे पूरे वर्ष कोई भी चिट्ठी-पत्री मत लिखना
मेरे स्नेह-निमंत्रण का भी चाहे मोल नहीं करना
 
नहीं भेजना तोहफे मुझको चाहे तीज-त्योहारों पर  
पर थोडा-सा हक दे देना बाबुल के गलियारों पर

रूपया पैसा कुछ ना चाहूँ..बोले मेरी राखी है
आशीर्वाद मिले मैके से मुझको इतना काफी है

 तोड़े से भी ना टूटे जो ये ऐसा मन -बंधन है 
इस  बंधन को सारी दुनिया कहती रक्षाबंधन है 

तुम भी इस कच्चे धागे का मान ज़रा-सा रख लेना
कम से कम राखी के दिन बहना का रस्ता तक लेना

कविता किरण
६ अगस्त २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter