रक्षा बंधन
पर्व पर, बहना आई गाँव।
हाथों में मेहँदी रची, और महावर पाँव।
और महावर पाँव, चूड़ियों सजी कलाई।
कुमकुम अक्षत दीप, मिठाई, राखी लाई।
बाँधी रेशम डोर, लिया भाई का चुंबन।
बहना आई गाँव, मनाने रक्षा बंधन।
सावन की है पूर्णिमा, राखी का त्यौहार।
हर धागे से झाँकता, भ्रात बहन का प्यार।
भ्रात बहन का प्यार, बाँध बहना खुश होती,
रेशम की यह डोर, कीमती सबसे मोती।
आती मीठी याद, पुनः बीते बचपन की,
राखी का त्यौहार, पूर्णिमा है सावन की।
लहँगा चुन्नी ओढ़कर बहना है
तैयार
प्यारे भाई के लिए, लाई है
उपहार।
लाई है उपहार, संग रेशम का धागा।
मिला बहन का प्यार, भाग्य भाई का जागा।
फूलों सी मुस्कान, लिए नन्ही सी मुन्नी,
मना रही है पर्व, पहनकर लहँगा चुन्नी।
रीत निभाना प्रीत की, भैया मेरे चाँद।
बहन करे शुभ कामना, रेशम डोरी बाँध।
रेशम डोरी बाँध, लगाए माथे टीका,
बिन राखी त्यौहार, सकल सावन है फीका।
कहे बहन हे भ्रात, मुझे तुम भूल न जाना,
सावन में हर साल, बुलाकर रीत निभाना।
-कल्पना रामानी
६ अगस्त २०१२ |