अंजुमनउपहारकाव्य संगमगीतगौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहे पुराने अंक संकलनअभिव्यक्ति कुण्डलियाहाइकुहास्य व्यंग्यक्षणिकाएँदिशांतर

भाई बहन

रक्षाबंधन

तू चिंगारी बनकर उड़ री
जाग-जाग मैं ज्वाल बनूँ
    तू बन जा हहराती गंगा
    मैं झेलम बेहाल बनूँ

आज बसन्ती चोला तेरा
मैं भी सज लूँ लाल बनूँ
    तू भगिनी बन क्रान्ति कराली
    मैं भाई विकराल बनूँ

यहाँ न कोई राधारानी
वृन्दावन बंशीवाला
    तू आँगन की ज्योति बहन री
    मैं घर का पहरे वाला

बहन प्रेम का पुतला हूँ मैं
तू ममता की गोद बनी
    मेरा जीवन क्रीडा-कौतुक
    तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी

मैं भाई फूलों में भूला
मेरी बहन विनोद बनी
    भाई-की-गति-मति-भगिनी-की
    दोनों मंगल-मोद बनी

यह अपराध कलंक सुशीले
सारे फूल जला देना
    जननी की जंजीर बज रही
    चल तबियत बहला देना

भाई एक लहर बन आया
बहन नदी की धारा है
    संगम है गंगा उमड़ी है
    डूबा कूल-किनारा है

यह उन्माद बहन को अपना
भाई एक सहारा है
    यह अलमस्ती एक बहन ही
    भाई का ध्रुवतारा है

पागल घड़ी बहन-भाई है
वह आजाद तराना है
    मुसीबतों से बलिदानों से
    पत्थर को समझाना है

- गोपाल सिंह नेपाली
६ अगस्त २०१२

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter