भारत प्यारा
देश हमारा
लगता पर्वों की शोभा से न्यारा
इन पर्वों की ज्योति से जगती
नई स्फूर्ति, नया उजियारा
राखी के नाजुक धागों में
समा जाये यह अपनत्व हमारा
छोड़ भूत के विद्वेष वैर को
भारत समरस होता सारा
महिमा इन रक्षा सूत्रों की
है विख्यात इतिहासों में
बाँधी राखी शची ने रण में
ताकि विजय मिली प्रयासों में
मुगल हुमायूँ तक पिघल गया
पाकर राखी राजपूतानी की
चल पड़ा रक्षा को तब
लाज रखी महान निशानी की
गर न वो यूनानी राखी आती
जिसने पोरस को भी बाँध दिया
तो शायद होता नहीं सिकंदर
जिसको पुरु ने जीवन दान दिया
बांधे भगिनी राखी जब सबको
ले प्रण रक्षा का भाई तब तो
भारतीय संस्कृति का अनूठा बंधन
जो न अब तक समझ आया जग को
आज जरूरत है हम सबको
खुद को इस राखी में पिरोने की
संगठित होकर बनें विजयी
गयी बेला अब सोने की
आओ रक्षाबंधन पर बांध जायें
हम इस अटल प्राण में
"इदं न मम राष्ट्राय स्वाहा" हमेशा
रखेंगे स्मरण मन में
--दीपक भारत दीप
६ अगस्त २०१२ |