पावन एक स्वरूप है

 

बढ़ते हैं संसार में, जब जब पाप तमाम।
तब होते हैं अवतरित, इस दुनिया मे राम।
इस दुनिया में राम, धर्म संस्थापित करते।
बनकर खुद आदर्श, नीति जीवन में भरते।
'ठकुरेला' कविराय, मूल्य जीवन के गढ़ते।
रामराज्य में प्रेम, दया, नैतिक बल बढ़ते।

देता जीवन राम का, सबको यह सन्देश।
मूल्यवान है स्वर्ग से, अपना प्यारा देश।
अपना प्यारा देश, देश के वासी प्यारे।
रहे न कोई भेद, एक हैं मानव सारे।
'ठकुरेला' कविराय, न कुछ बदले में लेता।
होता देश महान, बहुत कुछ सबको देता।

आशा हैं, विश्वास हैं, हैं सुख का आधार।
राम जगत के सार हैं, करते भव से पार।
करते भव से पार, ताप सारे मिट जाते।
हो जाते हैं धन्य, राम गुण जो भी गाते।
'ठकुरेला' कविराय, सहज ही मिटे निराशा।
हो सुख का संचार राम भर देते आशा।

हरते हैं श्री राम जी, सबके मन की पीर।
जो आ जाता शरण में, रहता नहीं अधीर।
रहता नहीं अधीर, कष्ट मिट जाते भीषण।
मिलती सदा सुकीर्ति, अहिल्या या कि विभीषण।
'ठकुरेला ' कविराय, राम शत मंगल करते।
दयावन्त हैं राम, सभी के आतप हरते।

छाये रावण हर तरफ, फिर आओ श्री राम।
व्याकुल है दुःख से धरा, सिसक रही अविराम।
सिसक रही अविराम, हो गयी मैली गंगा।
दानव हुए दबंग, रात -दिन करते दंगा।
'ठकुरेला 'कविराय, कर्म शुभ सभी भुलाये।
राम चलाओ बाण, मिटें ये रावण छाये।

-- त्रिलोक सिंह ठकुरेला
२२ अप्रैल २०१३

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