जनम लिये श्रीराम

 
कौशल्या का तप फला, पूत मिले श्रीराम।
करते सदा सपूत ही, कुल का ऊँचा नाम।

सुनी विधाता ने सदा, भक्तों की फ़रियाद।
राम भेजकर कर दिया, दशरथ कुल आबाद।

असुरों के संहार को, जन्मे थे श्रीराम।
हेतु बना वनवास को, पूरा कर गए काम।

असुरों का उत्पात था, साधू-संत निराश।
वन जाकर श्रीराम ने, किया जुल्म का नाश।

अपयश लेकर केकई, बनी धर्म की ढाल।
वन भेजा श्रीराम को, असुर काल के गाल।

राजधर्म के हित हुयी, मात केकई सख्त।
असुरों के संहार को, छीन लिया था तख़्त।

- रघुविन्द्र यादव
२२ अप्रैल २०१३

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