यों ही नहीं राम जा डूबे
सरजू जी के घाट !
दिन भर राजपाट
की खिटखिट जनता के परवाने
मातहतों का कामचोरापा, फिर धोबी के ताने
लोग समझते राजा जी तो
भोग रहे हैं ठाट !
था आसान
कहाँ त्रेता में भी तब राज चलाना
शेर और बकरी को पानी एक घाट पिलवाना
ऊपर से भरमाने वाले
कितने चारण-भाट !
हारे-थके
महल में पहुँचें तो सूना संसार
सीता की सोने की मूरत दे सकती न प्यार
ऐसे में क्षय होना ही था
वह व्यक्तित्व विराट !
-ओमप्रकाश तिवारी
२२ अप्रैल २०१३ |