राममय होना

 
मर्यादा का आचमन
एक आदर्श, जो भ्रमित करता
फिर भी युगांत हो कर
संस्कृति में रंग भरता
मन प्राण में वो
युग पुरुष चलता रहा है साथ
और चलती रही है
जानकी की व्यथा
ले कर राम कथा आज

सदियों से एक सीता
जीवित रही है
हर प्रागंन प्रकोष्ठ हर द्वार
हर माप दंड में
सीतारुप अनंत
यह समाज का मेरुदंड
कालजयी दिगंत.

कोई राम बन कर आज फिर
शबरी का समर्पित बेर चख
रावण का संहार कर
एक और इतिहास रच
सीता तुलसी रूपा सी बने
तुम राम बनो न हो भ्रमित
घर की तुलसी को जल दो
प्रेम संचित !

मंजुल भटनागर
२२ अप्रैल २०१३

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