और तुलसीदास
कल हमको मिले अपने शहर में
वही तुलसी, हाँ
जिन्होंने लिखी थी रघुनाथ गाथा
अभी भी ओढ़े हुए थे
रामनामी जीर्ण काँथा
क्या बताएँ
हो रहे बेहाल थे वे दोपहर में
खोजते वे फिर रहे थे
राम जी का घर अवध में
बावरे थे जिक्र करते थे
सिया का राजपथ में
राजपथ डूबा
हुआ था, नए सपनों की लहर में
उन्हें केवट मिले
जो गरिया रहे थे राम जी को
राजमद डूबे-हुए देखा उन्होंने
भरत जी को
लक्ष्ण सोए
मिले उनको युगों से खंडहर में
-कुमार रवीन्द्र
२२ अप्रैल २०१३ |