हे राम बचा लो धाम

 
  हे राम बचा लो धाम
धरा अकुलाई है

बड़े-बड़े नायक-अधिनायक फेल हुए
आपनी जेबें भरने वाले खेल हुए
मानवता मर गयी महज अफवाह नहीं है
कोई भी मिट जाय हमें परवाह नहीं है
संवेदना सहमकर
रोने आई है

पंच-प्यारों से आश जगी धीरे-धीरे
जनसेवा में जुटे हुए हीरे-हीरे
चौकीदार जगे हैं औ' चौकन्ने हैं
हुए पुराने मक्कारी के पन्ने हैं
रामायण लिख रही
कलम घबराई है

सोने की अगणित लंकाएँ ध्वस्त हुईं
सभी रावणों की आशाएँ पस्त हुईं
दुनिया देख रही फिर भारत माता को
कौशल्या से जन्मे जगत विधाता को
राह देखती चाह
यही सच्चाई है

- उमा प्रसाद लोधी
१ अप्रैल २०२०

इस रचना पर अपने विचार लिखें    दूसरों के विचार पढ़ें 

अंजुमनउपहारकाव्य चर्चाकाव्य संगमकिशोर कोनागौरव ग्राम गौरवग्रंथदोहेरचनाएँ भेजें
नई हवा पाठकनामा पुराने अंक संकलन हाइकु हास्य व्यंग्य क्षणिकाएँ दिशांतर समस्यापूर्ति

© सर्वाधिकार सुरक्षित
अनुभूति व्यक्तिगत अभिरुचि की अव्यवसायिक साहित्यिक पत्रिका है। इसमें प्रकाशित सभी रचनाओं के सर्वाधिकार संबंधित लेखकों अथवा प्रकाशकों के पास सुरक्षित हैं। लेखक अथवा प्रकाशक की लिखित स्वीकृति के बिना इनके किसी भी अंश के पुनर्प्रकाशन की अनुमति नहीं है। यह पत्रिका प्रत्येक सोमवार को परिवर्धित होती है

hit counter