धूप खिलेगी

 
  धूप खिलेगी तुम कुहरे पर
तीर चलाओ तो

तिमिर-जाल के आलिंगन में
भोले-भाले गाँव
मत उदास हो आएँगे फिर
उजियारे के पाँव
अन्तर्मन में सूर्यवंश की
किरण उगाओ तो

सोच-समझ धरना कलियों पर
कोई तेज छुरी
इनकी किलकारी से बनता
घर भी जनकपुरी
कन्या-रत्न किसी सीपी से
अगर हटाओ तो।

ऊँच-नीच के कारागृह में
साँस बहुत टूटी
मिल जाएगी मृत समाज को
संजीवन बूटी
पहले बेर किसी शबरी के
जूठे खाओ तो

सिया हरण पर चुप जटायु जी
बैठे हैं घर में
कौन कटाये पंख, दशानन
से अब अम्बर में
कहाँ गए सुग्रीव, नील-नल
कभी बताओ तो

नारी नहीं मुद्रिका केवल
अपनाओ छोड़ो
कोई वचनवध्दता अपनी
अनायास तोड़ो
किसी स्वयंवर के प्रांगण में
धनुष उठाओ तो

- रमेश गौतम
१ अप्रैल २०२०

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