आत्मा लिपटी रहे श्रीराम से

 
  आत्मा लिपटी रहे श्रीराम से
तन चला जाए जहाँ जिस काम से

जब पड़ाव मिले अयोध्या में मिले
याद भी आएँ न लंका के किले
बोझ वय का स्वयं कम हो जाएगा
माँ सिया को देख बचपन आएगा
सुबह करवाएगी कीर्तन शाम से

भावना हो ले पताका भक्ति की
गोद में हनुमान जी की शक्ति की
हो भरत, शत्रुघ्न, लक्ष्मण सा हृदय
प्रेम-क्रीड़ा में सहज पाए विजय
कामना को रस मिले प्रभुनाम से

जगत रामायण कहे, निश्चय करो
पात्र में किसके रहोगे? तय करो
दस मुखों से तम हमें समझा रहा
दीप इकलौता ही जीता आ रहा
नव सुगंधें आ रहीं हरिधाम से

- कुमार गौरव अजीतेन्दु
१ अप्रैल २०२०

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