रोम रोम में राम

 
  रोम रोम में रमा प्रकृति, कृति
दोनों के कृतिकार

वेदासन से उतर ओम यह
लोक भूमि तक आया
रमा हुआ है कण कण में
इसलिए राम कहलाया

यही मान्यता है आता जब
बढ़ता अत्याचार

प्रातः मिलन हुआ संबोधन
राम राम का स्वर
राम नाम है सत्य गूँजता
रहा मरण अवसर

दिन चर्या का अंग आज भी
साँसों का आधार

- पं. गिरिमोहन गुरु
१ अप्रैल २०२०

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