राम की मर्यादा

 
  गली गली में गूँज रहा है
सन्नाटे का शोर
मानवता के लिए राम लो
विपदा सकल अगोर

अनदेखे पाहुन ने जग का
चैन लिया है छीन
श्वास-श्वास हर मानुष उसकी
दया दृष्टि आधीन
नरपिशाच संतानें तेरी
हर दिन रहा अरोर

अकड़ वात में अक्खड़ डोले
द्वारे-द्वारे मीच
रोज बिछाती नगर-नगर में
लाशों के दुल्लीच

क्योंकर बाँधी इतनी कच्ची
प्रभु श्वासों की डोर

बोध हुआ जगती नश्वर है
करता मनुज गुमान
चले धौंकनी कब तक दिल की
भला किसे अनुमान

सोये रैन जो पाँव पसारे
क्या पता जगेगा भोर

- अनामिका सिंह 'अना'
१ अप्रैल २०२०

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