राम अबीर रंग ऐसा लगा

 
  राम अबीर रंग, ऐसा लगा
छूटा ना कोई अंग
राम रंग की पीत चुनरिया
द्वापर त्रेता सतयुग वारी
सब युग भीगे
रमते राम
मन में राम तन में राम.
जब दुर्दिन हो, जब बारिश हो
संशय उठता जब पल पल हो
जब घिर आये हों कारे बदरा
या फैला हो कोरोना
तुम्हीं हो राम, संकट मोचन
मुख में राम सब में राम.
जब हुआ अभिषेक
था अमंगल अतिरेक
कैकयी मति हुई कुभंग
माँगे तीन वचन रति रंग
बनूँ राजरानी, था स्वप्न विशेष
राजमुकुट तज बने बनवासी राम
पर प्रजा मन बसें थे राम.
सब के राम सब में राम
कौशल्या मन साथ चला
दुर्भिक्ष सा तन, हाथ मला
दशरथ तन ले बैकुंठ चले
भरत सिंहासन तज दूर खडे
सेवा तप से हर ताप गला
राम रंग का पुष्प खिला
हर मन बोला, तन में राम मन में राम

बन बन भटके लक्ष्मण राम
ऐश्वर्य छोड़ संताप सहे
लीला अपनी रचते राम
सीता को कुछ और लुभाते
पर माँ विलाप, क्या नहीं सुन पाते?
माँ आशीष दे, ममता रोती
बोली माता कहाँ हो राम
मेरे राम सबके राम
कौशल्या को कौन संभाले
पल पल जो पुत्र शोक है पाले
कितनी अबला, कितनी सबला
है प्रतीक्षा रत, कितनी
कौशल्या
कितने आँसू, कितनी यादें
माँ बेटे की, अविरल साँझें
छूट नहीं सकता माँ बेटे का
प्रेम प्रीत राम रंग रांगा
कहाँ हो राम, कौशल्या के राम

हे राम
जीतो चाहे कितनी पृथ्वी
अथाह बना लो सम्पति
लौट चलो पर
अयोध्या नगरी, अपनी डगरी
हर कौशल्या, राह निहारे
तुम्हीं विचारो, बोलो राम
मंदिर बने, ना बने, भूले नहीं राम
रचा लिखा है हर मानस के
तन में राम, मन में राम.

- मंजुल भटनागर
१ अप्रैल २०२०

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