घायल हुई तितिक्षा

 
राम! तुम्हारे आने की
फिर है हमें प्रतीक्षा

आतंकी बलशाली होकर
ज़हर बो रहे जग में
अगणित रावण जनम गये हैं
सिया छल रहे मग में
आर्य! तुम्हारे त्रेता की
व्यर्थ हुयी सब शिक्षा

सुभग प्रथाएँ छूट गयी हैं
सबल जगत में धन हैं
मायावी खरदूषण व्यापे
आक्रोशित जन-जन हैं
तत्व तुम्हारा भूल गये
चित्रपटी है दिक्षा

कैक्टस बढ़े, तुलसियाँ सूखीं
बेसुध है ख़ुद माली
तेजहीन हो रहे सूर्य को
जुगनू देते गाली
क्रोध तुम्हारा मौन खड़ा
घायल हुयी तितिक्षा

- डॉ. शैलेष गुप्त 'वीर' 
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३

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