राम का आवाहन

 
हर साल
एक रावण जी उठता है
अतीत की गठरी से बाहर
और हम उसका पुतला हर चौराहे पर
जलाते जा रहें हैं
पर
हम इस तरह लगातार
एक ग़लत परंपरा का निर्वाह करते हैं…
वस्तुतः हम इसे मारना नहीं चाहते…
क्योंकि हम मानते हैं कि यह एक पुतला है
महज काग़ज़ी पुतला…
हमारी यह हास्यास्पद मानसिकता
एक दिन
हमारा घर जला देगी…
क्योंकि
अब रावण के शीश गली गली
चौराहे चौराहे उग आए हैं…
इस अदृश्य रावण के संहार के लिए
आवश्यकता है
शक्ति साधना की
तपस्विनी मनश्चेतना की
जिसकी पृष्ठभूमि में
पावन अयोध्या में राम जन्म ले सकें…
हमें राम बनना होगा…
हमें अब
दृढ़ संकल्प गहन आस्था
और वैचारिक नैतिकता
के मंत्र से
सिद्ध करना ही होगा
वह मृत्यु अस्त्र
जिसके अचूक प्रयोग से सूख जाए
इसकी नाभि का अमृत
और फिर कोई शीश उग न सके दुबारा
इतिहास के पृष्ठों पर
अतीत के सुनहरे हस्ताक्षर
भविष्य की उज्ज्वलता
और धरती पर मनुष्यता को
बचाने के लिए
हमें राम बनना ही होगा
हमें राम बनने के लिए कृतसंकल्प
होना ही होगा
नहीं तो ये राक्षस
एक दिन समस्त मानवता का रक्त पी जाएगा
और धरती पर
एक भी सीता नहीं बचेगी

- रंजना गुप्ता  
१ अप्रैल २०१९२२ अप्रैल २०१३

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